Such a Weird World

A thousand words go unheard sometimes
While a single syllable creates a sensation.
A million screams are not listened
while a single tear can melt hearts of millions.
A thousand talks may be useless
while a simple silence can make hearts meet.
Such a strange world it is
here a million efforts can't do good
but a single person can change generations.



Thursday, March 14, 2013

महिला और महिला दिवस


इस विश्व की शुरुवात से पुरुष को नारी से ज्यादा ऊंचा दर्ज़ा दिया जाता रहा है जब कि नारी को दुसरे दर्जे का बताकर धुत्कारा जाता रहा है. समाज में यह नाइंसाफी हमेशा से बरक़रार रही है. जितना पुराना यह अन्याय है उतनी ही पुरानी है इस अन्याय के खिलाफ उठने वाली आवाज़. इतिहास में हम कई ऐसी स्त्रीयों से वाकिफ होते हैं जिन्होंने समाज के बंधनों को तोड़ा और अपने दौर के स्थापित नियमों के विरुद्ध जाकर दुनिया को वह कर के दिखाया जो माना जाता था कि औरतों का काम नहीं है. ऐसी ही एक लड़की थी जिसे “जोआन ऑफ आर्क” के नाम से जाना जाता है. जोआन ने फ्रांस और ब्रिटेन के बीच के सौ-वर्षीय युद्ध में अपने देश फ्रांस के लिए युद्ध में हिस्सा लिया और अपने देश को ब्रिटेन से मुक्ति दिलाने में बहुत बड़ा योगदान दिया. इस महान वीरांगना का यह हश्र हुआ कि जब अंग्रेजों ने इसे युद्ध में बंधक् बनाया तो इसे एक चुड़ैल बता कर जला दिया. स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाली एक और महिला थी ‘बूदिका,’ जोकि अपने देश को रोमन सामराज्य से बचाने के लिए युद्ध लड़ी. हमारे खुद के देश में झांसी की रानी, लक्ष्मीबाई और चान्द्बिबी जैसी वीरांगनाएं अपनी बहादुरी के लिए मशहूर हैं. इन सभी महिलायों ने अपने समाज में फैले हुए अन्याय को झेला और कई दकियानूसी ताने सहने के बाद ही स्वतंत्रता की जंग लड़ी.

हमेशा से माना जाता गया है कि पुरुष काम पर जायेंगे और स्त्रीयां घर का काम करेंगी, लड़के पढेंगे और लड़कियां घर का काम सीखेंगी, लड़के बाहर घूमेंगे और लड़कियां और औरतें अपने घर की चार दीवारियों में सीमित रहेंगी. लड़कियां कुल की इज्ज़त मानी गईं और इसी कारण से उनसे उनकी हर प्रकार की आज़ादी चीन ली गयी. पर्दा और घूंघट के पीछे औरतों को बैठा दिया गया और आदेश दे दिए गए कि वह इस लक्ष्मण रेखा के बाहर कदम नहीं रखेंगी. जब मीरा ने अपनी जिन्दगी कृष्ण की भक्ति में समर्पित कर दी तो उन्हें कुलनाशी बताया गया. अपनी भक्ति के लिए उन्हें बुरा-भला कहा गया और कुल का ‘मान-सम्मान’ बचाने के नाम पर उनकी जान लेने की कई बार कोशिशें की गयीं. उनसे शिकायत थी कि वह अपने आप को परदे में सिकोड़ कर क्यों नहीं रखती हैं. आज भी विश्व में कई ऐसे अंश व्याप्त हैं जो कि स्त्रियों को रसोई के चूल्हे-चौखट पर बाँध देना चाहते हैं. निश्चित रूप से ऐसी मानसिकता हमेशा से रही है और इस मानसिकता को पूरी तरह से खत्म करना मानव समाज के लिए बहुत बड़ी चुनौती है.

पितृसत्ता विश्व के लगभग हर समाज में रही है और आज भी अधिकतम समाजों में चलती आ रही है. पितृसत्ता समाज का एक ऐसा रूप है जिसमें सारे अधिकार पुरुषों के हाथ में होते हैं और औरतों और लड़कियों से यह उपेक्षा रखी जाती है कि वह पुरुषों के बनाये हुए नियमों के अनुसार रहें. अगर कोई औरत इन नियमों का पालन नहीं करे तो इस समाज में उसको तरह तरह की बातें सुनाई जाती हैं, उसका बहिष्कार तक  किया जाता है. पितृसत्ता के खिलाफ समाज में कई जंग छेडी गयीं हैं. मतदान करने का अधिकार पहले महिलायों को नहीं दिया गया था. माना जाता था कि पुरुषों की अपेक्षा में स्त्रीयां निर्णय नहीं ले सकतीं. तमाम समाज सुधारकों, जिसमे एमिलिन पान्खर्स्त प्रमुख हैं, ने मिलकर एक बहुत लंबे संघर्ष के बाद मतदान करने और चुनाव लड़ने का अधिकार प्राप्त किया. हमारे देश में हमेशा से महिलायों की दुर्दशा थी. उन्नीसवी सदी तक सती प्रथा एक आम बात थी. हमारा देश एक ऐसा देश था जिसमें महिलायों को घूंघट और पर्दों में दबाकर रखने का प्रचलन था. महिलायों की इस स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए कई अभियान खड़े किये गए. सती के घातक और क्रूर प्रचलन को खत्म किया गया. राजा राम मोहन रॉय, इश्वर चंद विद्यासागर जैसे समाज सुधारकों ने स्त्री शिक्षा और स्त्रीयों के सशक्तिकरण से सम्बंधित मुहीम चलायी. महिला सशक्तिकरण और महिलायों को बराबरी का दर्ज़ा दिलाने के लिए कई और प्रमुख अभियान छेड़े गए.        

आज के दौर में स्त्रीयां पहले से ज्यादा स्वतंत्र हैं. मगर स्त्रीयों की आज़ादी अभी सम्पूर्ण नहीं है. पितृसत्ता अभी तक समाज में कायम है. अभी भी कई लोग मानते हैं कि लड़कियों का बाहर जाना अच्छा नहीं है. अभी भी कई लोग हैं जो कि नहीं चाहते कि उनकी बेटियां काम पर जाएँ. तमाम कानूनी अंकुशों के बावजूद भी दहेज प्रथा अपनी बुलंदियों के साथ पनप रही है. कन्या भ्रूण-हत्या एक बड़ी समस्या है. आज भी कई घर ऐसे हैं जहाँ बेटे के पैदा होने पर खुशी का माहौल रहता है और बेटियों के पैदा होने पर एक मातम सा छा जाता है. अभी भी स्त्रीयों के खिलाफ हिंसा होती है. अभी और भी महिलायों की स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए लड़ाई बाकी है.

अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस आज विश्व भर में मनाया जाता है. इस दिवस की स्थापना महिलाओं के अधिकारों के संघर्ष को प्रसारित करने, प्रचारित करने और लोगों को महिलाओं की अवस्था से पहचान करने के लिए हुई थी. इस दिवस की अहमियत यह थी कि महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में पता चले तथा और ज्यादा संख्या में महिलाएं अपने ऊपर ढहाए गए अन्यायों के खिलाफ बोलें. यह दिन प्रेरणा देता है कि महिलायें समाज के उन बंधनों को तोड़ सकें जो उनकी आज़ादी के साथ खिलवाड़ करते हैं. यह दिन प्रेरणा देता है कि जो संसार वर्षों से पुरुषों द्वारा राज की गयी है उसमें स्त्रीयां भी अपने हक ले सकती हैं. यह दिन बताता देता है की इस दुनिया में स्त्रीयों का भी बराबरी की हिस्सेदार हैं. इसी मकसद के साथ महिला दिवस की स्थापना की गयी थी और उम्मीद है कि आगे भी यह दिन संघर्ष की प्रेरणा देता रहेगा.

  

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